दिल की लहरों को जब किनारा नहीं मिलता, तो कितनी गहरी बातें बन जाती हैं
दिन के उजाले मैं जो बस एक आवाज़ है, रात होते ही वोआहें बन जाती हैं।
पीछे मुर कर देखो तो ज़िन्दगी कितनी अलग सी दिखती है
क्या हो सकता था, क्या हुआ, क्या नहीं, इस सबकी इक झलक सी दिखती है।
जो कभी मिला ही नहीं, उससे बिछड़ने पर भी यादें तड़पती हैं
तकदीर मनो या तदबीर, की होते होते कितनी मुलाकातें रह जाती हैं।
जो उस राह निकलते तो क्या होता, ये जानने को दिल बेताब होता है
क्या अच्छा हुआ, क्या बुरा, ऐसी एक एक बात का हिसाब होता है।
वोह अनदेखी अनजानी राहें, हमसे छुपकर क्या क्या सपने दिखलाती हैं
इतनी दूर आ गए की मुर भी नहीं सकते, दिल मैं बस वो चाहतें रह जाती हैं।
- स्मृती