Saturday, December 6, 2008

दिल की लहरों को जब किनारा नहीं मिलता, तो कितनी गहरी बातें बन जाती हैं

दिन के उजाले मैं जो बस एक आवाज़ है, रात होते ही वोआहें बन जाती हैं।


पीछे मुर कर देखो तो ज़िन्दगी कितनी अलग सी दिखती है

क्या हो सकता था, क्या हुआ, क्या नहीं, इस सबकी इक झलक सी दिखती है।

जो कभी मिला ही नहीं, उससे बिछड़ने पर भी यादें तड़पती हैं

तकदीर मनो या तदबीर, की होते होते कितनी मुलाकातें रह जाती हैं।


जो उस राह निकलते तो क्या होता, ये जानने को दिल बेताब होता है

क्या अच्छा हुआ, क्या बुरा, ऐसी एक एक बात का हिसाब होता है।

वोह अनदेखी अनजानी राहें, हमसे छुपकर क्या क्या सपने दिखलाती हैं

इतनी दूर आ गए की मुर भी नहीं सकते, दिल मैं बस वो चाहतें रह जाती हैं।

- स्मृती



आज यूंही मन में एक सवाल आया,
आज यूंही ख़ुद को सवालों से घिरा पाया।

क्या सूरज अंधेरे से डरता है जो रात के साए में जाके छुप जाता है?
या चांदनी को देख शर्म से लाल होता और पिघल जाता है?

क्या गरज गरज कर काले बादल इस धरती को डराते हैं?
या बूंदों के बिछड़ने पर रोते हैं, चिल्लाते हैं?

ये आंसू आंखों से चालक कर हमारे दिल का हाल बताते हैं?
या हमे उदास पाकर प्यार से हमे चूमते और सहलाते हैं?

कितने सवाल यूं तरस रहे हैं कि किसी ने उनका जवाब नहीं दिया,
और कितने ही राज़ यूं तरप रहे हैं कि किसी ने उनपर सवाल ही नहीं किया।

- स्मृती