गहरी अकेली इक रात में, जब चाँद न था आकाश में
नज़रे उठा के देखा तो पाया उन तारों को साथ में।
इतने झिलमिल इतने रोशन पहले तो तुम न थे
इतनी बार यहाँ आई हूँ, पहले तो तुम यहाँ न थे।
हंसने लगे सितारे, खिलखिलाते हुए कहा
सच कहा तुमने, तुमने आज ही हमे देखा।
कल चाँद तुम्हारे साथ था, चलका रहा था रौशनी
क्योँ हमे तुम देखती, तुमे क्या थी कोई कमी।
पर चाँद तो हमेशा से ही है चंचल, कब एक सा वोह रहा है?
आज जो हम बात कर रहे हैं, उसकाoo न होना ही इसकी वजह है।
काल फिर आएगा, हमसे ज़िदा चमकेगा जगमगआयगा
उसकी जगमग रौशनी में हमारा रंग फिर से छुप जाऐगा।
पर हम तो हमेशा से ही हैं तुम्हारे, थे और रहेंगे
जब चाहो बस नज़र उठाकर देखना, बस इतना ही कहेंगे।
उस रात मैंने अपनी आखों को नाम पाया
सितारों का साथ क्या होता है यह समझ आया।
कब में थी तनहा अकेली, तुम ही साथ मेरे सभी
अब चाँद कितना भी चमके, तुम्हे न भूल पाऊँगी कभी।
- स्मृती
Thursday, December 17, 2009
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