Thursday, December 17, 2009
नज़रे उठा के देखा तो पाया उन तारों को साथ में।
इतने झिलमिल इतने रोशन पहले तो तुम न थे
इतनी बार यहाँ आई हूँ, पहले तो तुम यहाँ न थे।
हंसने लगे सितारे, खिलखिलाते हुए कहा
सच कहा तुमने, तुमने आज ही हमे देखा।
कल चाँद तुम्हारे साथ था, चलका रहा था रौशनी
क्योँ हमे तुम देखती, तुमे क्या थी कोई कमी।
पर चाँद तो हमेशा से ही है चंचल, कब एक सा वोह रहा है?
आज जो हम बात कर रहे हैं, उसकाoo न होना ही इसकी वजह है।
काल फिर आएगा, हमसे ज़िदा चमकेगा जगमगआयगा
उसकी जगमग रौशनी में हमारा रंग फिर से छुप जाऐगा।
पर हम तो हमेशा से ही हैं तुम्हारे, थे और रहेंगे
जब चाहो बस नज़र उठाकर देखना, बस इतना ही कहेंगे।
उस रात मैंने अपनी आखों को नाम पाया
सितारों का साथ क्या होता है यह समझ आया।
कब में थी तनहा अकेली, तुम ही साथ मेरे सभी
अब चाँद कितना भी चमके, तुम्हे न भूल पाऊँगी कभी।
- स्मृती
Saturday, December 6, 2008
दिल की लहरों को जब किनारा नहीं मिलता, तो कितनी गहरी बातें बन जाती हैं
दिन के उजाले मैं जो बस एक आवाज़ है, रात होते ही वोआहें बन जाती हैं।
पीछे मुर कर देखो तो ज़िन्दगी कितनी अलग सी दिखती है
क्या हो सकता था, क्या हुआ, क्या नहीं, इस सबकी इक झलक सी दिखती है।
जो कभी मिला ही नहीं, उससे बिछड़ने पर भी यादें तड़पती हैं
तकदीर मनो या तदबीर, की होते होते कितनी मुलाकातें रह जाती हैं।
जो उस राह निकलते तो क्या होता, ये जानने को दिल बेताब होता है
क्या अच्छा हुआ, क्या बुरा, ऐसी एक एक बात का हिसाब होता है।
वोह अनदेखी अनजानी राहें, हमसे छुपकर क्या क्या सपने दिखलाती हैं
इतनी दूर आ गए की मुर भी नहीं सकते, दिल मैं बस वो चाहतें रह जाती हैं।
- स्मृती
आज यूंही मन में एक सवाल आया,
आज यूंही ख़ुद को सवालों से घिरा पाया।
क्या सूरज अंधेरे से डरता है जो रात के साए में जाके छुप जाता है?
या चांदनी को देख शर्म से लाल होता और पिघल जाता है?
क्या गरज गरज कर काले बादल इस धरती को डराते हैं?
या बूंदों के बिछड़ने पर रोते हैं, चिल्लाते हैं?
ये आंसू आंखों से चालक कर हमारे दिल का हाल बताते हैं?
या हमे उदास पाकर प्यार से हमे चूमते और सहलाते हैं?
कितने सवाल यूं तरस रहे हैं कि किसी ने उनका जवाब नहीं दिया,
और कितने ही राज़ यूं तरप रहे हैं कि किसी ने उनपर सवाल ही नहीं किया।
- स्मृती
Thursday, July 31, 2008
दिल की बात होंठों से सुना पाते तो क्या बात थी,
तुम्हे हाल-ऐ-दिल अपना बता पाते तो क्या बात थी।
पलके उठाकर हमने आंखों से कुछ जाताना चाहा,
पलकें झुकाकर दिल की गहराई को दिखाना चाहा।
तुम क्या जानो तुम्हे ही देख कर बिताई वो सारी रात थी,
हाथ मेरी और एक बार तुम बढ़ा लेते, तो क्या बात थी।
हमसे मत पूछो ये कैसे हुआ या कब हुआ,
पहली नज़र का था जादू या तुम्हे जाना जब तब हुआ।
न चाहते हुए भी तुम्हे दिल दे बैठे, तुम में वो बात थी,
इस चाहत का इज़हार तुमसे कर पाते, तो क्या बात थी.
काश कभी बिन बुलाए तुम मेरे पास आ जाओ,
सुनने को जो मैं बेचैन हूँ कुछ ऐसा कह जाओ।
कहो की तुम्हे भी कभी तो सताती हमारी याद थी,
यह ख्वाब मेरे जो सच हो पाते, तो क्या बात थी।
- स्मृती