Thursday, July 31, 2008

दिल के किसी कोने मैं तू राज़ की तरह छुपा था

बंद आंखों के पीछे सैलाब की तरह छुपा था।

छुआ तो जाना की तू हवा का इक झोंका है

जिसपर जिंदगी लुटा दी, वोह बस मृगतृष्णा, इक धोखा है।

कब बादल गरजे, कब नैना बरसे, कब बारिश आई और चली गई

तुझे देखने को आँख जो खोली, वोह इक बूँद जो बाकी थी, चालक गई।

- स्मृती

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