दिल के किसी कोने मैं तू राज़ की तरह छुपा था
बंद आंखों के पीछे सैलाब की तरह छुपा था।
छुआ तो जाना की तू हवा का इक झोंका है
जिसपर जिंदगी लुटा दी, वोह बस मृगतृष्णा, इक धोखा है।
कब बादल गरजे, कब नैना बरसे, कब बारिश आई और चली गई
तुझे देखने को आँख जो खोली, वोह इक बूँद जो बाकी थी, चालक गई।
- स्मृती
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