Thursday, July 31, 2008

दिल की बात होंठों से सुना पाते तो क्या बात थी,
तुम्हे हाल-ऐ-दिल अपना बता पाते तो क्या बात थी।

पलके उठाकर हमने आंखों से कुछ जाताना चाहा,
पलकें झुकाकर दिल की गहराई को दिखाना चाहा।
तुम क्या जानो तुम्हे ही देख कर बिताई वो सारी रात थी,
हाथ मेरी और एक बार तुम बढ़ा लेते, तो क्या बात थी।

हमसे मत पूछो ये कैसे हुआ या कब हुआ,
पहली नज़र का था जादू या तुम्हे जाना जब तब हुआ।
न चाहते हुए भी तुम्हे दिल दे बैठे, तुम में वो बात थी,
इस चाहत का इज़हार तुमसे कर पाते, तो क्या बात थी.

काश कभी बिन बुलाए तुम मेरे पास आ जाओ,
सुनने को जो मैं बेचैन हूँ कुछ ऐसा कह जाओ।
कहो की तुम्हे भी कभी तो सताती हमारी याद थी,
यह ख्वाब मेरे जो सच हो पाते, तो क्या बात थी।

- स्मृती

2 comments:

Ashish Chordia said...

nice .. :) good utilization of time.

Anonymous said...

good work....
Impressive... to say the least...
seems some serious thoughts have gone in here!!!!