Saturday, December 6, 2008
आज यूंही मन में एक सवाल आया,
आज यूंही ख़ुद को सवालों से घिरा पाया।
क्या सूरज अंधेरे से डरता है जो रात के साए में जाके छुप जाता है?
या चांदनी को देख शर्म से लाल होता और पिघल जाता है?
क्या गरज गरज कर काले बादल इस धरती को डराते हैं?
या बूंदों के बिछड़ने पर रोते हैं, चिल्लाते हैं?
ये आंसू आंखों से चालक कर हमारे दिल का हाल बताते हैं?
या हमे उदास पाकर प्यार से हमे चूमते और सहलाते हैं?
कितने सवाल यूं तरस रहे हैं कि किसी ने उनका जवाब नहीं दिया,
और कितने ही राज़ यूं तरप रहे हैं कि किसी ने उनपर सवाल ही नहीं किया।
- स्मृती
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1 comment:
waah waah ... itne dinon baad yed andar ki kaviyatri kaise jaag gayi ... wonderful thoughts!!
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