दिल की बात होंठों से सुना पाते तो क्या बात थी,
तुम्हे हाल-ऐ-दिल अपना बता पाते तो क्या बात थी।
पलके उठाकर हमने आंखों से कुछ जाताना चाहा,
पलकें झुकाकर दिल की गहराई को दिखाना चाहा।
तुम क्या जानो तुम्हे ही देख कर बिताई वो सारी रात थी,
हाथ मेरी और एक बार तुम बढ़ा लेते, तो क्या बात थी।
हमसे मत पूछो ये कैसे हुआ या कब हुआ,
पहली नज़र का था जादू या तुम्हे जाना जब तब हुआ।
न चाहते हुए भी तुम्हे दिल दे बैठे, तुम में वो बात थी,
इस चाहत का इज़हार तुमसे कर पाते, तो क्या बात थी.
काश कभी बिन बुलाए तुम मेरे पास आ जाओ,
सुनने को जो मैं बेचैन हूँ कुछ ऐसा कह जाओ।
कहो की तुम्हे भी कभी तो सताती हमारी याद थी,
यह ख्वाब मेरे जो सच हो पाते, तो क्या बात थी।
- स्मृती
2 comments:
nice .. :) good utilization of time.
good work....
Impressive... to say the least...
seems some serious thoughts have gone in here!!!!
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